Friday, May 16, 2008

फट रहे है पुराने कागज़,
स्याही भी उडती जा रही,
हो गये सब शब्द धुँधले,
समय की धूल अक्षर खा रही
इस बात का मुझे ग़म नही,
कि इन्हे मै पढ़ नही सकता,
फिर भी सहेज रखा है इन्हे,
क्योकि,
तेरे हाथों की खुशबू,
आज भी हर ख़त से रही॰॰॰॰।"

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