फट रहे है पुराने कागज़,
स्याही भी उडती जा रही,
हो गये सब शब्द धुँधले,
समय की धूल अक्षर खा रही ।
इस बात का मुझे ग़म नही,
कि इन्हे मै पढ़ नही सकता,
फिर भी सहेज रखा है इन्हे,
क्योकि,
तेरे हाथों की खुशबू,
आज भी हर ख़त से आ रही॰॰॰॰।"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment