Friday, May 16, 2008

ले दे के अपने पास फकत इक नज़र तो है
क्यों देखे किसी को किसी की नज़र से हम
माना की गुलज़ार न कर सके जमी को
कुछ कांटे कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम

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