Sunday, May 11, 2008

ये दिल

पढ़ कर वो चाँद शब्द उनके,
अहसास धडकनों का लगे बढ़ने,
होठों पर आए भीनी सी मुस्कान,
ये दिल खेले भावनाओ से खेल.

छेड़े मन के तार कुछ ख्याल,
उनहूँ भूलो इसे, कहे कोई बार बार,
अजीब सी उलझन मैं पड़े लागून हँसने,
जाने क्यों, ये दिल खेले भावनाओ से खेल.

किस्सा नही है ये बस इस बार का,
लौट आता है जैसे मौसम बहार का,
अभी तो शायद ये कट जायेगा, पेर
फिर खेलेगा, ये दिल भावनाओ से खेल.

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